MahaKumbh 2025 का विशेष पर्व सुरू हो गया है. जिसका प्रमुख आकर्षण Naga Sadhu है. कुंभ मेले मे हमेशा Naga Sadhu इस विषय पर बहुत चर्चा होती है.
यहा हम जानते है Naga Sadhu कपडे क्यो नही पहनते है, इसके पीछे क्या कारण है.
MahaKumbh का प्रमुख आकर्षण Naga Sadhu
MahaKumbh 2025 ही नही बल्की सभी कुंभ मेले मे Naga Sadhu आकर्षण का केंद्रबिंदू रहे है.
पूरी दुनिया भर में नागा साधू के संदर्भ में चर्चा होती रहती है. वह कैसे रहते है, क्या खाते है, क्या करते है ऐसे बहुत सारे विषय के बारेमे चर्चा हमेशा होती रहती है.
समाज मन मे उनके प्रति एक आश्चर्य से भरा माहोल देखने मिलता है. सोशल मीडिया तथा अन्य विविध प्लॅटफॉर्म फर नागा साधू की ही चर्चा होती रहती है.
MahaKumbh 2025 का पावन पर्व शुरू हो गया है, महा स्नान का समय करीब आ रहा है. इस पावन पर्व को हासिल करने के लिए देश और दुनिया भर से लोग जमा हुए है.
वैसे ही अपने ढेरे और आखाडे को छोड कर नागा साधू भी MahaKumbh 2025 का मंगल स्नान करने के लिए दाखिल हुए है.
इसलिये नही पहनते कपडे Naga Sadhu
Naga Sadhu ऐसा मानते चले आये हैं कि व्यक्ति निर्वस्त्र जन्म लेता है और यह अवस्था प्राकृतिक है। इसलिए जीवन में सदैव नागा साधु वस्त्र धारण नहीं करते हैं और निर्वस्त्र रहते हैं।
कुंभ मेले में वह प्रण लेते है, जिसके बाद वे लंगोटी का प्रयोग भी बंद कर देते हैं। बाद में वे जीवन भर कपड़े नहीं पहनते।
नागा साधु कभी भी वस्त्र धारण नहीं करते हैं। वे अपने शरीर पर भस्म लगाकर रहते हैं।
ठंड में भी वे वस्त्र धारण नहीं करते हैं। वे लोग स्वयं को भगवान का दूत मानते हैं और भगवान का ध्यान करते हैं।
नागा साधु दिन में एक बार ही भोजन करते हैं और वे भोजन भी भिक्षा मांग करते हैं।
अगर उन्हें किसी दिन 7 घरों में नहीं मिलती है, तो उन्हें भूखा ही रहना पड़ता है।
नागा साधु हमेशा ही नग्न अवस्था में ही नजर आते हैं. चाहे कोई भी मौसम हो, उनके शरीर पर वस्त्र नहीं होते. वे शरीर पर भस्म लपेटकर घूमते हैं.

आदिगुरू शंकराचार्य ने की थी अखाड़े की स्थापना
कुंभ मेले के शाही स्नान पर आपने नागा साधुओं के एक समूह को अपनी युद्धकला का प्रदर्शन करते हुए स्नान के लिए जाते देखा होगा।
आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित विभिन्न अखाड़ों में रहने वाले ये साधु नग्न रहते हैं, अपने शरीर को जलाते हैं, मार्शल आर्ट में कुशल हैं और हिंदू धर्म के अनुयायी हैं। ऐसे साधुओं को ‘Naga Sadhu’ कहा जाता है।
सनातन धर्म में अन्य साधुओं की तरह नागा साधुओं का भी बहुत महत्व है।
वे भौतिक सुखों को त्याग देते हैं और सत्य और धर्म के मार्ग पर चलते हैं। इन्हें ईश्वर प्राप्ति का साधन माना जाता है।
बहुत कठीण होता है नागा साधुओं का जीवन
खुद को भगवान का दूत मानने वाले नागा साधुओं का जीवन बहुत कठिन होता है।
Naga Sadhu बनने की प्रक्रिया बहुत लंबी और कठिन मानी जाती है। नागा भिक्खु बनने की दीक्षा विभिन्न नागा अखाड़ों में होती है।
प्रत्येक अखाड़े की अपनी-अपनी मान्यताएं और परंपराएं होती हैं और वे उसी के अनुसार शुरुआत करते हैं।
नागा साधुओं को कई बार ‘भुट्टो’ भी कहा जाता है। नागा साधुओं का जीवन बहुत ही जटिल होता है।
अखाड़े में शामिल होने के बाद उन्हें गुरु सेवा के साथ-साथ सभी छोटे-बड़े काम दिए जाते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि एक व्यक्ति को नागा साधु बनने में 12 साल लग जाते हैं।
Naga Sadhu बनने की प्रक्रिया की शुरुआत में सबसे पहले व्यक्ति को ब्रह्मचर्य की शिक्षा लेनी पड़ती है।
इसमें सफलता के बाद महापुरुष दीक्षा दी जाती है। इसके बाद यज्ञोपवीत का पाठ किया जाता है।
Naga Sadhu कहाँ रहते हैं?
नागा साधु बनने के बाद व्यक्ति गांव या शहर की भीड़-भाड़ वाली जिंदगी छोड़कर पहाड़ों के जंगलों में रहने के लिए चला जाता है।
इनका निवास स्थान ऐसे स्थान हैं जहां आमतौर पर कोई आता-जाता नहीं है।
वे झोपड़ियों में रहते हैं और उनके पास कोई विशेष स्थान या घर नहीं है।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि नागा साधु सोने के लिए बिस्तर का प्रयोग नहीं करते। इनका पहनावा और खान-पान आम लोगों से बिल्कुल अलग होता है।
नागा साधु बनने की प्रक्रिया में छह साल बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान व्यक्ति को नागा साधु बनने के लिए जरूरी जानकारी मिलती है। इस दौरान व्यक्ति केवल लंगोट ही पहनता है।
Naga Sadhu के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य
- जैसा की हम जानते है नागा साधु बनने की प्रक्रिया में लगभग 12 साल लग जाते हैं. जिसमें पहले 6 साल को महत्वपूर्ण माना जाता है.
- इस अवधि में वे नागा पंथ में शामिल होने के लिए वे जरूरी जानकारियों को हासिल करते हैं.
- इस दौरान लंगोट के अलावा और कुछ भी नहीं पहनते. कुंभ मेले में प्रण लेने के बाद वह इस लंगोट का भी त्याग कर देते हैं और जीवनभर नग्न अवस्था में ही रहते हैं.
- नागा साधु बनने की प्रक्रिया में सबसे पहले इन्हें ब्रह्मचार्य की शिक्षा प्राप्त करनी होती है.
- इसमें सफल होने के बाद उन्हें महापुरुष दीक्षा दी जाती है और फिर यज्ञोपवीत होता है.
- इसके बाद वे अपने परिवार और स्वंय अपना पिंडदान करते हैं. इस प्रकिया को ‘बिजवान’ कहा जाता है.
- नागा साधुओं के लिए सांसारिक परिवार का महत्व नहीं होता, ये समुदाय को ही अपना परिवार मानते हैं.
- नागा साधुओं का कोई विशेष स्थान या मकान भी नहीं होता. ये कुटिया बनाकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं.
- सोने के लिए भी ये किसी बिस्तर का इस्तेमाल नहीं करते हैं बल्कि केवल जमीन पर ही सोते हैं.
- नागा साधु एक दिन में 7 घरों से भिक्षा मांग सकते हैं. यदि इन घरों से भिक्षा मिली तो ठीक वरना इन्हें भूखा ही रहना पड़ता है. ये पूरे दिन में केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करते हैं.
- नागा साधु हिन्दू धर्मावलंबी साधु होते हैं जोकि हमेशा नग्न रहने और युद्ध कला में माहिर के लिए जाने जाते हैं.
- विभिन्न अखाड़ों में इनका ठिकाना होता है. सबसे अधिक नागा साधु जुना अखाड़े में होते हैं.
- नागा साधुओं के अखाड़े में रहने की परंपरा की शुरुआत आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गयी थी.
MahaKumbh 2025 के इस पावन अवसर पर Naga Sadhu से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी हमने यहा आपको प्रदान की है.
महा कुंभ के इस पवित्र श्रेणी पर आप अवश्य ही मंगल स्नान का लाभ उठा सकते है.
जब भी महा कुंभ मेले मे जाऊ तो Naga Sadhu की प्रति सन्मान आवर आदर निश्चित रूप से प्रकट करे.